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महज 12 वर्ष की उम्र के आदित्य ने बना दिए 82 ऐप, जावा लैंग्वेज में पाई महारत

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महज 12 वर्ष की उम्र के आदित्य ने बना दिए 82 ऐप, जावा लैंग्वेज में पाई महारत

प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती है। ये फिर एक बार एक 12 साल के बच्चे ने साबित कर दिया है। पापा ने कैलकुलेटर मांगा तो 12 साल के आदित्य ने उन्हें खुद का डेवेलोप किया हुआ एक ऐप दे दिया, ताकि उसके पापा आराम से कैलकुलेशन कर पाएं । जब उसने अपनी बहन को मोबाइल पर ग्रैपी बर्ड गेम खेलते हुए देखा तो उसके लिए इससे भी अच्छा एक नया गेम बना के उसे गिफ्ट कर दिया। आपको लग रहा होगा ये कारनामे किसी क्वालिफाइड इंजीनियर ने किये होंगे पर नहीं ये सब कुछ जबलपुर के रहने वाले आदित्य ने किया है जो अभी महज 12 वर्ष का है। सिर्फ 9 वर्ष की आयु से ऐप बनाने लग गए इस बच्चे आदित्य चौबे के पास आज एक ऑनलाइन कम्पनी भी है जिसका नाम है “आदि”।

आदित्य बताता है कि जब वो महज 9 साल का था, तब उसने सबसे पहले लैपटॉप पर खेलते समय नोटपैड प्लस-प्लस नाम का एक सॉफ्टवेयर डाउनलोड कर लिया। फिर जब इस नोटपैड पर वो कुछ भी टाइप करना चाहता था तब इसमें एरर आ जाता था। इस समस्या को दूर करने के लिए आदित्य सेटिंग पर जाकर देखने लगा तो उसे जावा लैंग्वेज दिखी। इसके बाद आदित्य ने इस बारे में रिसर्च करना शुरू किया और धीरे धीरे जावा को जानने लगा । ये उसके सीखने का ज़ज़्बा हीं था की जिस लैंग्वेज का उसने नाम भी नहीं सुना था आज वो उसी लैग्वेज का एक एक्सपर्ट बन गया है।

12 साल के आदित्य ने बताया कि उसे उसके स्कूल के फ्रेंड हमेशा ये कहते थे कि इसे कुछ भी नहीं आता है, ये क्या करेगा आगे चल के ! आदित्य ने अपने दोस्तों को कभी ये नहीं बताया कि वो एप भी बनाता है । आदित्य अपनी कामयाबी से अपने स्कूल के दोस्तों को जवाब देना चाहता था। आज जॉय सीनियर सेकेंडरी स्कूल में 8वीं कक्षा में पढ़ने वाले आदित्य ने करीब 82 ऐप बना कर सबको जवाब दे दिया है।

आदित्य ने बताया की उसे मुझे गणित और भौतिकी की पढाई करना बहुत पसंद है और आगे चल के वो कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग करना चाहता है। एक इंजिनियर बन कर आदित्य का सपना है की वो खुद की एक कंपनी खोले। आदित्य आगे चल कर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर काम करना चाहता है । आदित्य को हमेशा अपने कक्षा से आगे की कक्षा की विज्ञान की किताबों में क्या पढ़ना है इसमें रूचि रहती थी। यही कारण है कि आदित्य ने जो पहला ऐप बनाया वो सुपर लॉजिकल था, उसमें एक तरफ बच्चों के लिए विज्ञान के तथ्य थे तो दूसरी तरफ हाई लेवल विज्ञान के तथ्य थे।

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