रोज़ाना 50 किलोमीटर दूर जाकर एक छात्र को पढ़ाता है महाराष्ट्र का रजनीकांत

भारत में गुरु शिष्य परंपरा पर आपने बहुत सी कहानियां सुनी होंगी। ऐसी कहानियां भी सुनी होगी जहाँ ओजस्वी छात्र अपने गुरु के पास बहुत दूर से पढ़ने जाता था पर क्या आपने कभी सुना है की कोई गुरु 50 किलोमीटर दूर रोज यात्रा करके अपने एक छात्र को पढ़ाने जाता हो ? जी हाँ ऐसा हीं कुछ महाराष्ट्र के एक शिक्षक पिछले 8 साल से कर रहे हैं।

इस 50 किलोमीटर की लम्बी यात्रा के दौरान शिक्षक को हर रोज बहुत सारी मुश्किलें भी पेश आती हैं। उनके रास्ते में कई दुर्गम इलाके आते है, इन इलाकों में छोटी बड़ी पहाड़ियों को भी पार करना पड़ता है। इसके साथ यात्रा के दौरान करीब 12 किलोमीटर का रेतीला रास्ता भी पार करना पड़ता है।

ये खबर महाराष्ट्र के नागपुर से है। 29 साल के रजनीकांत मंधे गुजरे आठ सालों से हर रोज रेत, पहाड़, और कीचड़ वाला ये रास्ता तय कर के 50 किलोमीटर का सफर करता है। ये यात्रा कर के वो महाराष्ट्र के चंदार गांव जाता है जहाँ वो 8 साल के एक बच्चे युवराज सांगले को रोज़ाना पढ़ाता है।

महाराष्ट्र में स्थित भोर जिले के अंतर्गत आने वाला ये चंदार गांव पुणे से 100 किलोमीटर दूर है। इस गांव में ज्यादा लोग नहीं रहते हैं, घरों की बात करें तो यहाँ सिर्फ 15 झोपड़ियां बनी हुई हैं। इन झोपड़ियों में करीब 60 लोग अपना जीवन यापन करते हैं। महाराष्ट्र सरकार द्वारा नियुक्त किये गए रजनीकांत मंधे हर रोज 50 किलोमीटर का सफर कर के इसी गांव में स्थित स्कूल में पढ़ाने पहुँचते हैं। इस स्कूल में फिलहाल सिर्फ एक छात्र युवराज सांगले हीं पढता है। इस गांव में पहुँच कर रजनीकांत सबसे पहले अपने एक मात्र छात्र युवराज को ढूंढते है जो उन्हें अक्सर पेड़ो और झाड़ियों में छुपा हुआ मिलता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसे अकेले स्कूल आने का कभी मन नहीं होता है।

Source =Maharashtratimes

चंदार गांव में एकमात्र छात्र को पढ़ाने जाने वाले रजनीकांत ने बताया की उस गांव तक पहुंचने में उन्हें एक घंटे से अधिक वक़्त लग जाता है। अगर बारिश का मौसम हो तो कीचड़ हो जाने की वजह से यहाँ आने में बहुत परेशानी भी पेश आती है।

रजनीकांत ने बताया कि, जब पहली बार वे आठ साल पहले यहाँ आकर पढ़ाना आरम्भ किया, तब यहाँ 11 बच्चे पढ़ने आते थे। इसमें से कई छात्र पढ़ने में प्रतिभाशाली भी थे परन्तु उनमें से कुछ लड़कियों को मजदूरी करवाने के लिए गुजरात भेज दिया गया। रजनीकांत ने कहा की उन्होंने लड़कियों को रोकने के प्रयास किये पर इसका कोई लाभ नहीं हुआ।

ख़बरों के अनुसार चंदर गांव का यह स्कूल 1985 में निर्मित हुआ था। पर जब से रजनीकांत यहाँ आये तब से उन्होंने बस चारदीवारी वो भी बिना किसी छत की देखी। इसके बावज़ूद रजनीकांत ने हार नहीं मानी और यहाँ आना जारी रखा। इस दौरान उन्हें कई तरह की परेशानियां भी झेलनी पड़ी जैसे एक रात उनके ऊपर सांप आ गिरा, फिर एक बार बारिश के कारण कीचड़ से भरी सड़क पार करते वक़्त उनकी मोटरसाइकल का बैलेंस बिगड़ गया और वो एक सांप पर जा गिरे। रजनीकांत कहते हैं की अगर सांप से उनकी तीसरी मुठभेड़ हुई तो वो शायद हीं जिंदा बचेंगे।

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