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आज 23 मार्च है यानि शहीदी दिवस। आज ही के दिन देश की आजादी के लिए अपनी जान की बाजी लगाने वाले भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी। भारत के इन वीर सपूतो का हम वंदन करते है। देश इनके साहस को कभी नहीं भूल सकता। इस अवसर पर आज पीएम नरेंद्र मोदी जी ने भी ट्वीट कर शहीदों को याद किया है।
Remembering Bhagat Singh, Rajguru & Sukhdev on the day of their martyrdom. India will never forget their courage & sacrifice.
— Narendra Modi (@narendramodi) March 23, 2017
आज से 83 साल पहले, 23 मार्च 1931 को अंग्रेजों ने केन्द्रीय संसद की कार्रवाही पर बम फेंकने के आरोप में इन वीरो को मृत्युदंड दे दिया था। देश में क्रांति की लौ जलाने वाली इस घटना को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर आज हम आपको भगत सिंह के ऐतिहासिक पिस्टल की दास्तान बता रहे है।
इंदौर स्थित बीएसएफ का केंद्रीय आयुध और युद्ध कौशल विद्यालय, शहीद क्रांतिकारी भगतसिंह की पिस्तौल को यहां के नये हथियार संग्रहालय में प्रदर्शित करने की योजना पर खास तौर पर काम किया जा रहा है। यह वही ऐतिहासिक पिस्तौल है जिसका प्रयोग करीब नौ दशक पहले तत्कालीन ब्रिटिश पुलिस अफसर जेपी सांडर्स का वध करने के लिए किया गया था।
सीएसडब्ल्यूटी के महानिरीक्षक पंकज गूमर के मुताबिक, भगतसिंह की पिस्तौल को बीएसएफ के नये शस्त्र संग्रहालय में प्रदर्शित करने के साथ साथ 'शहीदे-आजम' की जीवन गाथा को भी दिखाया जायेगा। इस योजना का उद्देश्य यह है कि आम लोग देश की आजादी में भगत सिंह के अमूल्य योगदान से अच्छी तरह परिचित हो सकें।
महानिरीक्षक पंकज गूमर ने कहा, "सांडर्स वध में इस्तेमाल भगतसिंह की पिस्तौल फिलहाल हमारे पुराने शस्त्र संग्रहालय में अन्य हथियारों के साथ प्रदर्शित की गयी है. लेकिन शहीदे-आजम के ऐतिहासिक हथियार को विशेष सम्मान देने के लिये हमारी योजना है कि इसे हमारे नये शस्त्र संग्रहालय में खासतौर पर प्रदर्शित किया जाये. हमारा नये संग्रहालय के अगले दो-तीन महीने में बनकर तैयार होने की उम्मीद है."
32 एमएम की सेमी ऑटोमेटिक पिस्तौल का निर्माण अमेरिकी हथियार निर्माता कम्पनी कोल्ट्स द्वारा किया गया था। इस पिस्तौल को 7 अक्तूबर1969 के दिन पंजाब की फिल्लौर स्थित पुलिस अकादमी से इंदौर में स्थित सीएसडब्ल्यूटी भेज गया था।
अन्य हथियारों के साथ इस पिस्तौल को भी बीएसएफ के शस्त्र संग्रहालय में रखा गया था।
भगत सिंह की विरासत को लेकर शोध कर रहे एक दल ने इस पिस्तौल के बारे में बीएसएफ के सीएसडब्ल्यूटी कार्यालय को पिछले वर्ष जानकारी दी थी। इसके बाद ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर तथा रिकॉर्ड की बारीकी से जांच पड़ताल करने पर इस बात की पक्की पुष्टि हो गई कि यह भगतसिंह के कब्जे से बरामद वही पिस्तौल है जिसका इस्तेमाल सांडर्स को मारने के लिए किया गया था।
गूमर ने जानकारी दी कि इस पिस्तौल को संभवत: ब्रिटिश राज के दौरान ही लाहौर से पंजाब की फिल्लौर स्थित पुलिस में भेज दिया गया था। 17 दिसंबर 1928 को जेपी सांडर्स का वध लाहौर में गोली मारकर किया था।
इसे "लाहौर षड़यंत्र कांड" का नाम दिया गया। इस मामले में भगतसिंह के अलावा अन्य दो क्रांतिकारियों शिवराम हरि राजगुरु और सुखदेव थापर को भी दोषी माना गया था और इन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी। इन तीनों क्रांतिकारियों को लाहौर की तत्कालीन सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 के दिन फांसी पर लटका दिया था।
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