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केंद्र सरकार ने कई सालों से अटके सरकारी नौकरियों...
केंद्र सरकार ने कई सालों से अटके सरकारी नौकरियों में एससी - एसटी को प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले को गंभीरता से लेने का मन बना लिया है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार का कहना है कि सभी विभागों में खासकर निचले कैडर में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति लोगों को तय सीमा तक आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।
सरकार का कहना है कि अभी यह स्थिति है कि कई मंत्रालयों और विभागों में एससी-एसटी का15 फीसद और 7.5 फीसद कोटा भी पूरा नहीं हो पा रहा है। संबंधित विभागों को यह सुनिश्चित करने के लिए जल्द ही निर्देश जारी किए जाएंगे। अगर इसके राजनितिक पहलुओं को देखें तो यह एक बहुत अहम् कदम मन जा रहा है, क्योंकि बसपा जैसी पार्टियों का यह अहम् मुद्दा हमेशा के लिए ख़त्म हो जायेगा।
सरकार के कार्मिक विभाग ने प्रमोशन में आरक्षण के मसले पर एम. नागराज बनाम केंद्र सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमल में लाने के लिए बनाई रिपोर्ट पर सहमति जताई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को समान अवसर और उनके समेकित विकास के लिए जरूरी है कि उनके लिए प्रमोशन में आरक्षण की सुविधा जारी रहे। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार के कई कैडर में एससी और एसटी वर्ग के लोगों की हिस्सेदारी संविधान में उनके लिए तय सीमा से भी कम है। इसलिए वक्त की जरूरत है कि जब तक आरक्षण तय सीमा तक न पहुंच जाए, उन्हें यह लाभ मिलता रहे।
एक तरफ जहां सरकार पदोन्नति में आरक्षण (1.1-5) लाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है। तो वही दूसरी तरफ इसके विरोध की तैयारी भी शुरू हो गई है। सर्वजन हिताय संरक्षण समिति के पदाधिकारियों ने सरकार को घेरते हुए खुली चेतावनी दी है कि यदि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ पदोन्नति में आरक्षण को पुनः लागु किया गया, तो वे इसके परिणाम भुगतने को भी तैयार रहे।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार इसे लागु करती है तो इसके विरोध में राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया जायेगा। पदाधिकारियों ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुपालन में उत्तर प्रदेश में सरकारी सेवाओं में पदोन्नति में आरक्षण समाप्त किया जा चुका है। अब वोट बैंक की राजनीति के चलते केंद्र सरकार ने पदोन्नति में आरक्षण पुनः बहाल करने के लिए 117वें संविधान संशोधन बिल को लोकसभा से पारित कराने की प्रक्रिया पुनः प्रारम्भ कर दी है। इससे उत्तर प्रदेश के 18 लाख सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों और छह लाख शिक्षकों में भारी गुस्सा है।
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